खेती की स्थिति :

शेरपुर की भूमि गंगा जी के बाढ़ की मिट्टी और बालू से बनी हैं ।पुरी मिट्टी दोमट मटीयर हैं गंगा के निकट की भूमि बलुई से बनी हैं । सन् 1964 तक सिचाई का कोई साधन नही था। पुरी की पुरी खेती जाड़े की बरसात पर निर्भर थी। खरीफ की फसल गंगाजी की बाढ़ की स्थिति पर निर्भर थी। खरीफ में कोदो, सांवा, ज्वार, बाजरा, अरहर, आदि की बुवाई होती थी। बाढ़ कम या ज्यादा प्रतिवर्ष आती थी जिससे खरीफ की फसल शायद ही मिल पाती थी। यदि देर से बाढ़ आती थी तो सांवा, टागुन, कोदो जैसी फसलें मिल जाती थी। अन्याथा पूरे परिवार का भरण पोषण मुश्किल होता था। गरीब जनता तबाह रहती थी खेती भी पुराने ढंग से, पुराने बीज के प्रयोग से होती थी जिससे पैदावार भी प्रति बीघा बहुत कम होती थी।
इस समय आधुनिक ढंग से खेती लगी है। अच्छा बीज उर्वरक, कीटनाशक दवायें एवं अन्य तकनीक विकसित होने से अब खेती में आमूल परिवर्तन हो गया। अब केवल मशीन से खेती होती है। हल, बैल अब देखने को भी नहीं मिलते। इस गाँव में 300 से अधिक ट्रेक्टर कार्यरत हैं। सबके पास कुछ न कुछ अपना सिचांई का साधन है। सरकारी नलकूप भी भारी संख्या में कार्यरत है। खेत की कटाई मड़ाई आदि भी मशीन से होने लगी है। किसान अब नकदी फसल जैसे आलू, मसूर, चना, मटर, सरसो आदि अधिक बोने लगे हैं। अब यहाँ की खेती भी लाभप्रद हो गई है।