आवागमन के साधन :

आज से 250 वर्ष पहले जब गाँव बसा था उस समय बरसात में नाव से तैर कर बाहर जाना पड़ता था। अन्य मौसम में केवल पद यात्रा करनी पड़ती थी। विवाह आदि अवसर पर डोली का प्रयोग होता था वह भी केवल उच्च वर्ग में। अन्य जाति के लोग पैदल जाकर ही विवह शादी करते थे। सन् 1870 ई0 के पूर्व तो कलकत्ता बनारस आदि शहरों मे भी लोग पैदल ही जाते थे। सामान बैल यो घोड़े या गदहे से ढोया जाता था। बड़ी नावों से भी कलकत्ता, पटना,बनारस आदि शहरों से सामान आता था। कच्ची या पक्की सड़क का नामेा निशान नहीं था । सन् 1936 में प्रथम बार इस गाँव के मननीय वीरेश्वरनाथ राय वकील गाजीपुर जिला बोर्ड के चेयरमेन बने थे। उन्होंने कुन्डसेर से शेरपुर के बड़का भागड़ तक कच्ची सड़क बनावाकर कंकड विछवाया था। लेकिन दो भागड़ों में पुल न होने से बरसात में कोई लाभ नहीं था।
इस गाँव से कुण्डेसर तक पक्की सड़क सन् 1975 के पश्चात् बनी। सन् 1947 के पूर्व इस गाँव में शायद ही किसी के पास बाईसिकिल रहीं हो। आज आवागमन कितना सुलभ हो गया है। अधिकांश लोगों के पास अपना साधान मोटर साइकिल, साइकिल, जीप, कार, टेम्पो आदि हैं। एक सरकारी बस भी गाजीपुर तक इस गाँव से आती जाती है। सन् 1954 के पूर्व इस गाँव में किसी ने रेडियो, टेलफोन, टी0वी0 आदि नहीं देखा था। सन् 1954 में पंचायती रेडियो इस गाँव के अयोध्या राय तत्कालीन गाँव सभापति के दरवाजे पर आई उसे देखने और सुनने के लिये सैकड़ों लोग एकत्रित होते थे। आज अधिकांश घरो में रेडियो टी0वी0 मोबाइल फोन, आदि मौजूद है। छोटी छोटी जाति के लोग भी इन साधनों का प्रयोग बड़ी अधिक संख्या में करने लगे हैं।