चिकित्सा सुविधा :

शेरपुर गाँव के बसने के सममय 50 वर्ष तथा स्थानिय रूप से चिकित्सा सुविधा नही थी । आयुर्वेद की प्रचालित दवाये लोग प्रयोग करते थे जो स्थानीय रूप से स्वंय बनाते थे । बुखार आने पर तुलसी की पत्ती का काढ़ा, शिहोर की पत्ती का काढ़ा बनाकर लोग पिते थें। ज्यादा बिमार होने पर चारपाई पर सुलाकर चार आदमी कन्घे पर रखकर स्थानीय मुहम्मदाबाद कसबे तक दवा कराने को ले जाते थे। 1947 तक इस गाँव में केवल आयुर्वेदिक दवायें ही प्रयोग कि जाती थी । इसके पश्चात् डा0 शिवपुजन उपाध्याय होमियोपैथिक दवा देने लगे थे । 1880 के पश्चात् से 1960 तक इस गाँव में दो वैद जवाहर पान्डे, केदार पान्डे, खरेलू चिकित्साक थे। झाड़ फुंक ज्यादा होता था। एक राजकीय आयुर्वेदिक, चिकित्सालय बाद मे काम करने लगा। इस समय एक अस्पताल का भवन बन गया हैं। अस्थाई रूप से एक डा0 कुछ दवायें बाट रहें हैं। एलोपैथिक दवाओ की कई दुकान खुल गई है जहाँ लोग अन्दाज से भी दवाये खरीद कर सिरदर्द, बुखार आदि में प्रयोग करते हैं। मुहम्मदाबाद में चिकित्सा कराने ज्यादातर लोग जाते हैं।
पहले जच्चा-बच्चा केन्द्र इस गाँव में नहीं था । स्थानीय दाइयाँ अपने अनुभव के आधार पर प्रसव कराया करती थीं जिसे जच्चा बच्चा की जान भी चली जाती थी। बाल मृत्युदर पहले इसीलिये अधिक थी। अब इसमें काफी सुधार हुआ है। प्रसव कराने अस्पताल में औरते जाने लगी हैं जहाँ सरकार द्वारा विशेष सुविधा प्रदान की जा रही है। असाध्य बिमारियों का इलाज शहरों में जाकर लोग कराने लगे हैं। झाड़ फूक कम हो गया। ओझा, सोखा भी कम हो गये हैं।