सांस्कृतिक स्थिति :

इस गाँव में आज भी पुरानी परम्पराओं एवं संस्कारों का पालन हो रहा है। बच्चे के जन्म से लेकर मृत्योपरान्त तक सभी संस्कार वैदिक रीति से पूरे किये जाते हैं। लड़के के जन्म के समय सोहर, मुन्डन संस्कार, विद्यारम्भ, यज्ञोपवीत, विवाह आदि संस्कार बड़ी श्रद्धा से पूरे किये जाते हैं। मृत्योपरान्त श्राद्ध गयाश्राद्ध, पितृवक्ष में श्राद्ध आदि कार्य भी वैदिक रीति से सम्पन्न होते हैं। इस अवसर पर समाज के हर वर्ग के लोग सम्मिलित होते हैं। देवी-देवताओं की पूजा, यहाँ के लोग बडी श्रद्धा से करते हैं। मूर्ति पूजा में इनका अटूट विश्वास है। गंगा की पूजा, तुलसी की पूजा, पीपल वृक्ष की पूजा, महावीर जी की पूजा, कामाख्या भवानी एवं रेवतीपुर की भवानी की पूजा बहुत धूम धाम से की जाती है।

आध्यात्मिक उन्नयन :

शेरपुर के लोगों की भक्ति भावाना एवं साधू सन्तों की सेवा में विशेष रूचि रहती है। यहाँ के गंगा के तट पर प्राचीन काल से ही साधू सन्त आकर चैमास बिताते रहे हैं। उन्नीसवीं शताब्दी के बड़े-बड़े संत यहाँ आये हैं और सम्मान पाये हैं। जनसंख्या के बढ़ने के साथ अध्यात्मिक क्षेत्र में काफी रूचि बढ़ी है। बीसवीं शताब्दी में इस गाँव में कई बड़े बड़े यज्ञ सम्मादित हुये हैं। अठारहवीं शताब्दी तक केवल शिवजी एवं भगौती जी मुख्य देवता थे। उन्नीसवीं शताब्दी में हनुमान जी का मन्दिर बना और रामायण तथा हरिकीर्तन का प्रचलन अधिक हुआ। सन् 1950 के लगभग गंगा जी के तट पर नागा बाबा का भारी यज्ञ सम्पादित हुआ। सन् 1995 में गंगाजी के तट पर 4 माह तक सीताराम संकीर्तन हुआ था सीताराम महायज्ञ त्यागी बाबा ने कराया। इस समय इस गाँव में प्रत्येक सप्ताह कहीं न कही 24 घण्टे का अखण्ड रामायण पाठ तथा हरिकीर्तन होता रहता है। पहले ज्यादातर दरवाजों पर रात को या दिन में दोपहर को रामायण की कथा हुआ करती थी। भौतिकवादी युग में अब किसी के पास इतना समय नहीं रह गया है। फिर भी हरिकीर्तन में विशेष रूचि है।